महिला समूहों को बेहतर बाजार दिलाने शुरू होंगे ‘सीजी मार्ट ‘: मुख्यमंत्री

रायपुर। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने गौठानों में महिला समूहों द्वारा तैयार किए जा रहे उत्पादों, वन क्षेत्रों के समूहों द्वारा लघु वनोपज के प्रसंस्करण से तैयार किए जा रहे उत्पादों जैसे शहद, वनौषधि, बस्तर शिल्प की कलाकृतियां, हैण्डलूम वस्त्र, कोसा वस्त्र जैसे विशिष्ट उत्पाद शहरी क्षेत्रों में एक ही छत के नीचे बिक्री के लिए उपलब्ध कराने के लिए ‘‘सीजी मार्ट‘‘ प्रारंभ करने के निर्देश दिए हैं। उन्होंने कहा कि सीजी मार्ट में महिलाओं के उत्पादों की बिक्री हो और इसका लाभ उन्हें मिले। उन्होंने कहा कि सीजी मार्ट पहले राजधानी रायपुर, फिर संभाग और जिला स्तर पर प्रारंभ किए जाने चाहिए। उन्होंने कहा कि सीजी मार्ट में तेलघानी से सरसों, अलसी, राई आदि के तेल भी बिक्री के लिए रखे जाए। उल्लेखनीय है कि राज्य शासन द्वारा हाल में ही तेलघानी बोर्ड के गठन का फैसला लिया गया है।

मुख्यमंत्री अपने निवास कार्यालय में आयोजित समारोह में गोधन न्याय योजना के हितग्राहियों को ग्यारहवीं एवं बारहवीं किश्त की राशि अंतरण के बाद संबोधित कर रहे थे। उन्होंने गोबर विक्रेताओं को ग्यारहवीं किश्त के रूप में 16 से 31 दिसम्बर तक गोबर बिक्री की राशि 4.51 करोड़ रूपए और बारहवीं किश्त के रूप में 01 जनवरी से 15 जनवरी तक की राशि 3.02 करोड़ रूपए इस प्रकार कुल 7.53 करोड़ रूपए की राशि गोबर विक्रेताओं के खाते में ऑनलाइन अंतरित की। इसे मिलाकर अब तक गोधन न्याय योजना के अंतर्गत किसानों और पशुपालकों को 71 करोड़ 72 लाख रूपए की राशि दी जा चुकी है।

कार्यक्रम में कृषि और जलसंसाधन मंत्री रविन्द्र चौबे, खाद्य मंत्री अमरजीत भगत, उद्योग मंत्री कवासी लखमा, महिला एवं बाल विकास मंत्री अनिला भेंड़िया, विधायक अमितेश शुक्ला, देवव्रत सिंह, मुख्यमंत्री के सलाहकार प्रदीप शर्मा, छत्तीसगढ़ खनिज विकास निगम के अध्यक्ष गिरीश देवांगन, कृषि उत्पादन आयुक्त डॉ. एम. गीता, मुख्यमंत्री के सचिव सिद्धार्थ कोमल सिंह परदेशी, इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. एस.के. पाटिल और कुल सचिव प्रभाकर सिंह उपस्थित थे।

मुख्यमंत्री ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि गोधन न्याय योजना से लाभान्वित होने वाले हितग्राहियों में से 57 हजार से अधिक हितग्राही भूमिहीन कृषक है। जिन्हें गोबर की बिक्री से आय का एक अच्छा साधन मिला है। गोधन न्याय योजना की परिकल्पना के अनुरूप साधनहीन और भूमिहीनों को न्याय मिला है। अब तक इस योजना में 35 लाख 86 हजार क्विंटल गोबर की खरीदी की जा चुकी है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार की महत्वाकांक्षी सुराजी गांव योजना नरवा, गरवा, घुरूवा, बाड़ी के अंतर्गत विकसित किए जा रहे गौठानों के माध्यम से बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार के अवसर मिल रहे हैं। प्रदेश में 3 हजार 851 सक्रिय गौठान है जिनमें महिला स्व-सहायता समूह की महिलाएं गोबर से वर्मी कम्पोस्ट तैयार कर रही है। एक समूह में लगभग 10 महिलाएं होती है, इस तरह केवल वर्मी कम्पोस्ट से ही 38 हजार 510 महिलाओं को आय का साधन मिला है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि इसी तरह सामुदायिक बाड़ी में 8 हजार 800 महिलाओं को रोजगार मिला है। महिला समूह 150 गौठानों में मशरूम उत्पाद, 238 गौठानों में मछली पालन, 210 गौठानों में बकरी पालन, 395 गौठानों में मुर्गी पालन और 618 गौठानों में गोबर के दीया, गमला, अगरबत्ती सहित विभिन्न आर्थिक गतिविधियों में काम कर रही है। इन गतिविधियों में एक अनुमान के मुताबिक 60 हजार से अधिक महिलाओं को सीधे रोजगार मिला है और अधिक गौठानों केे सक्रिय होने से लाखों लोगों को रोजगार के अवसर मिलेंगे। उन्होंने कहा कि समूह की महिलाएं कोरिया, बलरामपुर और दंतेवाड़ा में सिलाई और चप्पल बनाने का काम कर रही है। गौरेला-पेण्ड्रा-मरवाही में ढेकी से चावल बना रही है, जो सौ रूपए की प्रति किलो से बिक रहा है।

कृषि मंत्री रविन्द्र चौबे ने कहा कि गोधन न्याय योजना को प्रारंभ हुए पांच माह हुए हैं, गोधन न्याय योजना और राजीव गांधी किसान न्याय योजना की चर्चा सारे देश में हो रही है। उन्होंने कहा कि गोधन न्याया योजना का लाभ 01 लाख 45 हजार गौपालकों को मिल रहा है। सड़कों पर अब गायों का दिखना काफी कम हो गया है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार का प्रयास है कि गौठानों में आर्थिक गतिविधियां लगातार चलती रहे, जिससे गौठान जीवंत बने रहे। आजीविका मिशन से जोड़कर गौठानों में अनेक गतिविधियां महिला समूहों के माध्यम से चलाई जा रही है।

कृषि उत्पादन आयुक्त डॉ. एम. गीता ने गोधन न्याय योजना की प्रगति की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि निकट भविष्य में महिला स्व-सहायता समूहों द्वारा तैयार वर्मी कम्पोस्ट ओपन मार्केट में विक्रय के लिए उपलब्ध कराया जाएगा। प्रदेश में वर्मी कम्पोस्ट की नमूनों की जांच के लिए प्रयोगशालाओं की संख्या एक से बढ़कर सात हो गई है। रायपुर में दो, दुर्ग-बिलासपुर, सरगुजा, बस्तर और रायगढ़ में एक-एक प्रयोगशालाएं प्रारंभ की गई हैं।

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