भारत यात्रा पर निकले प्रोबेशनर आईएएस के दल ने देखा ग्रामीण विकास का जैविक माडल
दुर्ग(आईएसएनएस)। आईएएस प्रोबेशनर्स को मसूरी में प्रशिक्षण के दौरान भारत यात्रा कर पूरे देश का भ्रमण करना होता है साथ ही विभिन्न जिलों की प्रशासनिक विशेषताओं तथा नवाचार जानने मिलता है। इस क्रम में आज दुर्ग जिले में पहुंचे प्रोबेशनर्स ने जैविक खेती देखी। वे जैविक खेती को प्रोत्साहित करने बनाये गए माडल गौठानों के निरीक्षण पर भी पहुंचे। साथ ही उन्होंने देखा कि किस प्रकार यहां के किसान जैविक खेती की ओर अग्रसर हो रहे हैं और इससे बेहतर फसल हासिल कर अच्छी आय हासिल कर रहे हैं। प्रोबेशनर आईएएस माडल गौठान पहुंचे, वहां इन्हें बताया गया कि छत्तीसगढ़ में ग्रामीण विकास को लेकर बड़ी चुनौती पशुधन संवर्धन को लेकर थी। इसका सबसे अच्छा तरीका था कि इसके लिए विशेष तरह से पहल की जाएगी। माडल गौठानों में पशुओं के डे केयर की व्यवस्था की गई। इनके गोबर से कंपोस्ट खाद बनाया गया। साथ ही वर्मी कंपोस्ट आदि के बारे में बताया गया। कृषि विभाग के अधिकारियों ने बताया कि किस प्रकार विशेष तकनीक से यहां कंपोस्ट खाद बनाया जा रहा है। साथ ही इसके बाजार एवं विपणन के संबंध में भी बताया गया। इस दौरान स्वसहायता समूह की महिलाएं भी मौजूद रहीं। उन्होंने अपने द्वारा बनाये गए कंपोस्ट खाद आदि की जानकारी दी। गमले तथा स्वसहायता समूहों द्वारा हो रहे अन्य उत्पादनों की जानकारी भी दी। दल ने इसके संबंध में तकनीकी बातें पूछी तथा इस पहल से काफी प्रभावित हुए। इसके बाद उन्होंने जमीनी स्तर पर जैविक खेती के फायदे दिखाये गए। वे एक किसान पंकज टांक के खेत में पहुंचे। पंकज 50 एकड़ खेत में सब्जी और फल लगाते हैं। इसमें ड्रिप सिस्टम से वे इजराइली तकनीक से फार्मिंग करते हैं। पंकज ने बताया कि एक एकड़ खेत से 60 टन टमाटर उपजाते हैं। इसके अलावा पपीता और एप्पल बेर उगाते हैं। जिस समय दल पहुंचा उस समय पंकज के खेतों के टमाटर ट्रैक्टर में लादे जा रहे थे ताकि छपरा भेजे जा सकें। पंकज ने बताया कि किस प्रकार आर्गेनिक फार्मिंग उनके लिए वरदान साबित हुई। उन्होंने कहा कि ड्रिप इरीगेशन के माध्यम से एक-एक बूंद की बचत हुई। इसके लिए उद्यानिकी विभाग से सब्सिडी हासिल हुई। उद्यानिकी विभाग हर फल में अलग तरह की सब्सिडी देता है। इसका भी लाभ उठाया और अब अच्छी फसल ले रहा हूं। उन्होंने बताया कि ड्रिप के माध्यम से आर्गेनिक खाद पूरे फसल तक पहुंचती है। पहली फसल में कुछ ज्यादा खर्च लगता है लेकिन अब ये स्थिति है कि अंग्रेजी तरह से फसल लेने में यदि 1 रुपए का खर्च है तो जैविक फसल लेने में केवल 25 पैसे का खर्च है। उन्होंने बताया कि अभी मेरे खेतों से टमाटर तीन दिन पहले निकाले गए हैं लेकिन अब तक फ्रेश हैं। अभी दो दिन और इसी तरह से रहेंगे, यदि मैं फर्टिलाइजर और कीटनाशक का उपयोग करता तो यह मुश्किल था। उन्होंने बताया कि रेट भी अच्छा आ जाता है। प्रोबेशनर्स ने इस संबंध में श्री पंकज एवं उद्यानिकी विभाग की टीम की काफी प्रशंसा की।