कलाकारों को मंच से मिली पहचान, आदिवासी महोत्सव से बढ़ी छत्तीसगढ़ की शान
रायपुर। कला और संस्कृति किसी भी जनजाति समुदाय की अपनी पहचान है और इसी जनजाति की पहचान को अक्षुण्ण बनाए रखने राजधानी रायपुर में राष्ट्रीय आदिवासी महोत्सव का आयोजन हर किसी को भा रहा है। नृत्य के साथ गीत एवं धुनों की जुगलबंदी के बीच जनजाति संस्कृति की जीवंत प्रस्तुति ने छत्तीसगढ़ ही नही देश के अन्य राज्यों एवं दूसरे देश के कलाकारों को मंच देकर इस आयोजन से दर्शकों और कलाकारों से खूब वाहवाही बटोरी। आयोजन के माध्यम से दर्शकों ने हर्ष,उल्लास के वातावरण में जनजाति कलाकारों द्वारा मनोरंजन के सीमित संसाधनों के बीच एक से बढ़कर एक मनमोहक कार्यक्रम की प्रस्तुति दी।
आदिवासियों को जब राष्ट्रीय स्तर के आयोजन में पहली बार मंच मिला तो वे स्व रचित गीत, छोटे छोटे मनोरंजन के उपकरणों से तैयार धुन के माध्यम से आकर्षक वेशभूषा, आभूषण में सज धजकर इस तरह नृत्य कला का प्रदर्शन किया कि देखने वाले दर्शक भी पल भर के लिए प्रकृति के करीब पहुँच गए,उनके रहन-सहन,बोली-भाषा, रंगबिरंगी पोशाकों में गुम होकर टकटकी निगाहों से मंच की ओर ही निहारते रहें। नृत्य के साथ बाँसुरी, मादर, ढोल, झांझ, मंजीरे की कर्णप्रिय धुन और गायकों के उत्साह से भरे बोल ने सबकों भावविह्वल करते हुए थिरकने से भी मजबूर कर दिया। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद पहली बार राष्ट्रीय स्तर के इस आयोजन को देखकर हर किसी ने जहाँ तारीफ किया वहीं इस आयोजन में शामिल आदिवासी कलाकारों ने मंच मिलने पर खुशी जताते हुए कहा कि जनजाति समुदाय के संस्कृति को जन-जन तक पहुचाने का इससे बढि़या माध्यम हो नही सकता है। जीवन के उत्साह और उल्लास को नृत्य के माध्यम से पिरोकर आदिवासी कलाकारों ने मंच पर आकर्षक ढंग से प्रस्तुत कर अपने साथ छत्तीसगढ़ की पहचान को भी स्थापित किया।
साइंस कॉलेज मैदान में आयोजित तीन दिवसीय राष्ट्रीय आदिवासी महोत्सव में 6 देश के विदेशी कलाकारों, 25 राज्यों सहित 1800 से अधिक कलाकारों ने भाग लिया। युगांडा, बेलारूस, मालदीव, श्रीलंका, थाईलैंड, बांग्लादेश सहित भारत के विभिन्न राज्यों से आए जनजाति कलाकारों ने इस आयोजन में भाग लेकर जनजाति शैली में मंच पर कार्यक्रम प्रस्तुत किया। अपनी विशिष्ट शैली और परंपराओं की वजह से देखने वालों का ध्यान खींचकर उसे थिरकने को मजबूर कर देना ही आदिवासी नृत्य की पहचान होती है। यही वजह थी कि महोत्सव में शुभारंभ अवसर पर पहुंचने वाले अतिथि श्री राहुल गांधी, मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल, मंत्री गण और प्रदेश की राज्यपाल सुश्री अनसुईया उइके सहित अन्य अतिथि भी इन कलाकारों के साथ ताल में ताल मिलाकर मंच पर नृत्य करते नजर आए। यह पहली बार है कि इस तरह का आयोजन में थाईलैंड के युवा कलाकार एक्कालक नूनगोन थाई ने इस आयोजन पर छत्तीसगढ़ सरकार की सराहना करते हुए कहा कि जनजाति समुदाय की अपनी कला, संस्कृति होती है। इसकी पहचान आवश्यक है। जनजाति समुदाय एक कस्बे या इलाकों में निवास करते हैं, ऐसे में उनकी कला, संस्कृति की पहचान एक सीमित क्षेत्र में सिमट कर रह जाती है। राष्ट्रीय स्तर पर आदिवासी महोत्सव का आयोजन ऐसे सीमित क्षेत्र में सिमटे हुए कलाकारों की प्रतिभाओं को सामने लाने के साथ बड़े स्तर पर उनकी पहचान को स्थापित करते हुए जनजाति समाज की कला और संस्कृति की संरक्षण में एक बड़ा कदम है। उन्होंने बताया कि छत्तीसगढ़ राज्य के कलाकारों की प्रस्तुति भी उन्हें बहुत पसंद आई। बस्तर, झारखंड, लद्दाख, जशपुर सहित अन्य कलाकारों की प्रस्तुति को शानदार बताते हुए जनजाति समुदाय से जुड़े नृत्यों का आयोजन समय-समय पर होते रहने की बात कही। एक्कालक ने महोत्सव में नृत्य देखने आने वाले दर्शकों के साथ ही कलाकारों के आतिथ्य व सत्कार पर शासन को धन्यवाद दिया।
बेलारूस की एलिसा स्टूकोनोवा ने कहा कि यह उसका सौभाग्य है कि छत्तीसगढ़ आई। इसके लिए छत्तीसगढ़ सरकार को विशेष रूप से धन्यवाद बोलना चाहती है कि राष्ट्रीय आदिवासी महोत्सव का आयोजन कर जनजाति समुदाय के कलाकारों को मंच देने का काम किया गया। एलिसा ने कहा कि छत्तीसगढ़ के कलाकारों की प्रस्तुति देखकर अहसास हुआ कि यहां की संस्कृति, जीवन में कितनी विविधताए है। बड़े मंच पर कार्यक्रम प्रस्तुत करने के बाद हर कलाकारों का विश्वास दुगना होगा और आने वाले समय में सभी कलाकार ऐसे आयोजन में भाग लेंगे।
बस्तर क्षेत्र के कोंडागाँव से आए कलाकार उत्तम कश्यप ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की प्रशंसा करते हुए मंच से कहा कि सरकार द्वारा छत्तीसगढ़ी संस्कृति को सहेजने और राष्ट्रीय स्तर पर उभारने का काम किया जा रहा है। उनके ही प्रयास से छोटे छोटे स्थानों के कलाकारों को आज एक बड़े मंच पर कार्यक्रम प्रस्तुति के लिए जगह मिली है। झारखंड से प्रसिद्ध दमकच नृत्य प्रस्तुत करने वाले कलाकार गणेश महली ने बताया कि वे देश-विदेश में इस नृत्य को प्रस्तुत कर चुके है। छत्तीसगढ़ में राष्ट्रीय स्तर का आयोजन होना गर्व की बात है। उत्तराखंड के कलाकार कुंदन सिंह चौहान, सुरेंद्र सिंह चौहान, संजना राज ने बताया कि उन्होंने जौनसारी जनजाति की हारुल नृत्य की प्रस्तुति दी। यहाँ दर्शकों का प्यार और सरकार के सत्कार से वे बहुत अभिभूत है। उन्होंने बताया कि छत्तीसगढ़ की सरकार ने जनजाति कलाकारों का जो सम्मान दिया है वह हम जैसे कलाकारों को प्रोत्साहित करता है। दर्शक व जनजाति समुदाय पर शोध करने वाले डॉ रामचंद्र साहू का कहना था कि पहली बार रायपुर में इस तरह का आयोजन हुआ है। आदिवासी महोत्सव का आयोजन कर राज्य सरकार ने राज्य के साथ अन्य राज्य की जनजाति कलाकारों के संस्कृति को जोड़ने और जानने का अवसर दिया है, पहले फिल्मी कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता था जिसमें फूहड़ता भी होती थी। आदिवासी कलाकारों के कार्यक्रमों में जीवन की विविधता के साथ प्रकृति और रहन -सहन का भाव झलकता है।
साइंस कॉलेज में आयोजन स्थल पर एक ओर दर्शकों के साथ अन्य राज्य से आए कलाकारों को नृत्य कार्यक्रम के माध्यम से एक दूसरे की संस्कृति को देखा, समझा वही छत्तीसगढ़ के शिल्पकारों द्वारा तैयार कलाकृतियों,हतकरघा वस्त्रों, यहाँ के किसानों द्वारा उपजाने वाले उत्पादों, प्रदर्शनी के माध्यम से रहन-सहन,व्यंजनों के स्टाल के माध्यम से खान-पान को भी देखा।